One Nation One Election एक देश एक चुनाव
एक देश-एक चुनाव बिल: संसद में पेश, भविष्य में अमल की संभावनाएं
नई दिल्ली: One Nation One Election,
केंद्र सरकार ने देश में “एक देश-एक चुनाव” लागू करने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए मंगलवार को संविधान के 129वें संशोधन विधेयक और केंद्र-शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक को लोकसभा में पेश किया। विधेयक का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की संभावना को लागू करना है।
केंद्रीय विधि मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने संसद में विधेयक पेश करते हुए इसे संविधान सम्मत बताया। हालांकि, विपक्षी दलों ने इसे “संघीय ढांचे” और “जनता के अधिकारों” पर आघात बताते हुए कड़ी आपत्ति जताई।
जेपीसी को भेजा जाएगा बिल
विधेयक पर आगे की चर्चा के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस प्रस्ताव को जेपीसी के पास भेजने की मंशा व्यक्त की थी। जेपीसी में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल होंगे। समिति का गठन संसद में दलों की संख्या के अनुपात के अनुसार होगा।
प्रमुख प्रावधान और समयसीमा
विधेयक के अनुसार, यदि इसे संसद में विशेष बहुमत से पास कर दिया गया, तो इसका पूर्ण रूप से क्रियान्वयन 2034 से संभावित है।
2029 तक तैयारी: One Nation One Election
निर्वाचन आयोग को एक साथ चुनाव के लिए लगभग 46 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की आवश्यकता होगी। वर्तमान में, आयोग के पास 25 लाख मशीनें हैं, जिनमें से कई 15 वर्षों के भीतर अप्रचलित हो जाएंगी। इनकी खरीद और तैयारियों में लगभग 10 साल लग सकते हैं।
पहला एकीकृत चुनाव:
संविधान में प्रस्तावित संशोधन के अनुसार, 2029 में होने वाले आम चुनाव के बाद सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के विधानसभाओं के कार्यकाल को 2034 तक विस्तारित किया जाएगा। इसके बाद लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराया जा सकेगा।
विपक्ष की चिंताएं
विपक्षी दलों ने इस विधेयक को “तानाशाही की ओर कदम” और “संविधान के मूल ढांचे पर हमला” करार दिया है। तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, सपा, और कांग्रेस ने इसे संघीय व्यवस्था के खिलाफ बताते हुए कहा कि यह राज्यों की स्वायत्तता को प्रभावित करेगा।
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि यह विधेयक नागरिकों के “मतदान के अधिकार” को सीमित कर सकता है। वहीं, शिवसेना (उद्धव गुट), एआईएमआईएम, और अन्य विपक्षी दलों ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
सरकार की स्थिति
सरकार का दावा है कि यह विधेयक संविधान की भावना के अनुरूप है और अनुच्छेद 368 संसद को इस प्रकार का संशोधन करने का अधिकार देता है। एनडीए के सहयोगी दलों, जैसे जदयू, टीडीपी और शिवसेना (शिंदे गुट), ने इसका समर्थन किया है।
चुनौतियां और भविष्य की राह
यह विधेयक तकनीकी और प्रशासनिक स्तर पर कई चुनौतियों के साथ जुड़ा हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि निर्वाचन आयोग को समुचित संसाधनों और तकनीकी व्यवस्था के लिए पर्याप्त समय और बजट की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, राज्यों और केंद्र के बीच सहमति बनाना भी एक बड़ी चुनौती हो सकती है।